
घाना में डिपोर्टेशन: असल में क्या हो रहा है?
अमेरिका की थर्ड-कंट्री नीति, घाना की प्रतिक्रिया और मानवाधिकार सवाल
गूगल ट्रेंड्स पर “Ghana” और “Deportations to Ghana” खोज बढ़ने का कारण हाल ही की घटनाएँ हैं, जिनमें घाना की ओर हो रहे जबरन वापसी (डिपोर्टेशन) और अंतरराष्ट्रीय नीतियाँ शामिल हैं। यह मामला केवल घाना के नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य अफ्रीकी देशों के लोगों और अंतरराष्ट्रीय प्रवासन कानूनों से भी जुड़ा हुआ है।
हाल की घटनाएँ
अमेरिका से “थर्ड-कंट्री” डिपोर्टेशन
- अमेरिका ने हाल ही में कड़े इमिग्रेशन नियम लागू किए हैं।
- इस नीति के तहत कुछ अफ्रीकी नागरिकों को सीधे उनके देश वापस भेजने की बजाय, उन्हें पहले घाना भेजा जा रहा है।
- घाना ने आधिकारिक रूप से सहमति दी है कि वह पश्चिम अफ्रीकी देशों के नागरिकों (जैसे नाइजीरिया, गाम्बिया आदि) को अमेरिका से ग्रहण करेगा और फिर उन्हें उनके मूल देश भेजेगा।
मानवाधिकार और कानूनी चुनौतियाँ
- कई प्रवासियों का आरोप है कि डिपोर्टेशन फ्लाइट के दौरान उन्हें जंजीरों में बाँधकर, बिना पर्याप्त जानकारी दिए ले जाया गया।
- घाना पहुँचने के बाद उन्हें जिन जगहों पर रोका गया, वहाँ साफ-सफाई, रहने की सुविधा और सुरक्षा की भारी कमी बताई जा रही है।
- मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय कानून के उस सिद्धांत का उल्लंघन करती है जिसे नॉन-रिफाउलमेंट कहा जाता है यानी किसी व्यक्ति को ऐसे देश नहीं भेजा जा सकता जहाँ उसके उत्पीड़न या हिंसा का खतरा हो।
घाना के नागरिकों की वापसी
- 2020 से अब तक 12,000 से अधिक घानाई नागरिकों को विभिन्न देशों (जैसे अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, यूके और लीबिया) से डिपोर्ट किया जा चुका है।
- अकेले अमेरिका से पिछले कुछ वर्षों में लगभग 250 से अधिक घानाई नागरिकों को वापस भेजा गया।
- सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ मिलकर इन लौटे नागरिकों को समाज में फिर से बसाने की कोशिश कर रही हैं।
जबरन वापसी और शरणार्थी मुद्दे
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी घाना पर आरोप लगाया कि उसने बुर्किना फासो से भागकर आए सैकड़ों महिलाओं और बच्चों को जबरन वापस भेजा, जबकि वे हिंसा और आतंक से बचकर आए थे।
- इसे शरणार्थियों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन बताया गया।
कानूनी और ऐतिहासिक संदर्भ
- ECOWAS समझौता: पश्चिम अफ्रीकी देशों के बीच वीज़ा-फ्री यात्रा समझौते के कारण घाना में इन प्रवासियों को प्रवेश देने में कानूनी अड़चन कम है।
- नॉन-रिफाउलमेंट: अंतरराष्ट्रीय कानून का यह सिद्धांत कहता है कि किसी को भी ऐसे देश नहीं लौटाया जा सकता जहाँ उसके साथ उत्पीड़न या अमानवीय व्यवहार हो सकता है।
- द्विपक्षीय समझौते: डिपोर्टेशन प्रथाएँ आमतौर पर देशों के बीच किए गए समझौतों पर आधारित होती हैं।
मुख्य आलोचनाएँ और चिंताएँ
- मानवाधिकार हनन
- डिपोर्टेशन फ्लाइट में कठोर व्यवहार।
- घाना पहुँचने पर खराब रहने की स्थिति।
- मूल देश लौटाए जाने पर जान का खतरा।
- कानूनी अस्पष्टता
- जिनके पास शरण लेने का दावा लंबित था, उन्हें भी भेजा गया।
- न्यायिक प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सवाल।
- कूटनीतिक दबाव
- घाना के लिए यह एक संतुलन साधने जैसा है अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों के साथ रिश्ते निभाना और साथ ही मानवाधिकारों की रक्षा करना।
- डिपोर्टेड लोगों पर असर
- परिवार से बिछड़ना, मानसिक आघात और पहचान संबंधी समस्या।
- समाज में दोबारा बसने में कठिनाई।
क्यों चर्चा में है?
- अमेरिका की नई नीति जिसमें प्रवासियों को सीधे उनके देश नहीं, बल्कि किसी तीसरे देश में भेजा जा रहा है।
- मीडिया में रिपोर्ट्स कि इस प्रक्रिया में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
- डायस्पोरा (विदेश में रहने वाले घानाई नागरिकों) के बीच चिंता कि इसका असर उन पर भी पड़ सकता है।
घाना की स्थिति
- घाना ने आधिकारिक रूप से कहा है कि वह पश्चिम अफ्रीका के नागरिकों को अस्थायी तौर पर स्वीकार करेगा।
- साथ ही सरकार यह भी कहती है कि वह अपने नागरिकों की वापसी को सम्मानजनक और सुरक्षित तरीके से करेगी।
- अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर री-इंटीग्रेशन प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
“डिपोर्टेशन टू घाना” कई पहलुओं वाला विषय है
- घानाई नागरिकों की विदेश से वापसी,
- गैर-घानाई प्रवासियों को तीसरे देश के रूप में घाना भेजा जाना,
- और शरणार्थियों की जबरन वापसी।
यह मुद्दा केवल प्रवासन नीति नहीं, बल्कि मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और कानूनी दायित्वों से भी जुड़ा है। घाना के सामने बड़ी चुनौती है एक ओर वैश्विक सहयोग निभाना और दूसरी ओर मानवाधिकारों की रक्षा करना।