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एक इंसान रोशनी में घुलता हुआ, जो भावनात्मक बदलाव और आंतरिक हीलिंग को दर्शाता है
हीलिंग कभी-कभी खुद को खोने जैसा लगता है - लेकिन असल में आप अपनी सच्ची पहचान से मिल रहे होते हैं।

जब हीलिंग खुद को खोने जैसा लगता है

आप टूट नहीं रहे हैं - आप मुक्त हो रहे हैं।

हम सब कहते हैं कि हमें ठीक होना है लेकिन जब healing हमें उस पहचान को छोड़ने को कहती है जो हमने अपनी सुरक्षा के लिए बनाई थी, तब वो सबसे ज़्यादा डरावना लगता है।

कभी-कभी 'बढ़ना' खुद के और करीब आने जैसा नहीं लगता बल्कि उस इंसान से अजनबी हो जाने जैसा लगता है जो हमने बनने की इतनी कोशिश की थी।


भावनात्मक समस्या

जब आप वाकई healing शुरू करते हैं थेरेपी, जर्नलिंग, बॉउंड्रीज़ बनाना, खुद की भावनाओं पर ध्यान देना

आपको लगता है कि अब शांति मिलेगी। राहत। आज़ादी।

लेकिन इसके बदले आता है असमंजस। एक खालीपन।

आप उन लोगों को छोड़ने लगते हैं जिनसे अब भी लगाव है। वो दोस्तियाँ जिन पर आप कभी निर्भर थे, अब दूर लगने लगती हैं।

आप “ना” कहने लगते हैं, जब अंदर से आपकी आत्मा अभी भी "हाँ" बोलना चाहती है, बस ताकि कोई नाराज़ न हो।

और आप रोते हैं सिर्फ बीते हुए दिनों के लिए नहीं,

बल्कि उस version के लिए जो सब झेलता रहा: वो “लोगों को खुश रखने वाला”, “सबका ख्याल रखने वाला”, “हमेशा मजबूत दिखने वाला”।

वो थका हुआ था, लेकिन जाना-पहचाना था।

अब? अब आप खुद को ही नहीं पहचान पा रहे।

कोई नहीं बताता कि healing में ऐसा भी महसूस होगा जैसे आप अपने ही जीवन में परछाई बन गए हों।


छिपा हुआ भावनात्मक सच

एक कठिन सच्चाई:

हममें से ज़्यादातर लोग वो नहीं हैं जो हम हैं, बल्कि वो हैं जो हमें बनना पड़ा ताकि हम स्वीकार किए जाएं, सुरक्षित महसूस करें, या हालात पर कुछ काबू रख सकें।

वो “मजबूत” इंसान जो कभी मदद नहीं माँगता।

वो “अच्छा बच्चा” जो कभी मुँह नहीं खोलता।

वो “ज़िम्मेदार” जो कभी आराम नहीं करता।

ये सब coping mechanisms थे। एक तरह का armor।

आपका असली "मैं" इनके नीचे छिपा रहा।

तो जब healing शुरू होती है और आप pleasing बंद करते हैं, खुद को ताक पर रखना छोड़ते हैं, बार-बार हाँ कहना बंद करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे आप कुछ बेहद कीमती खो रहे हैं।

लेकिन सच ये है:

आप सिर्फ उस version को खो रहे हैं जिसे आपने जीने के लिए गढ़ा था।


दृष्टिकोण में बदलाव

हीलिंग का मतलब "बेहतर" इंसान बनना नहीं है।

इसका मतलब है वास्तविक रूप में खुद से मिलना, उस शोर और मुखौटों से परे जो आपने ज़िंदगी भर पहने।

और यही डराता है।

क्योंकि clarity अक्सर शोक के साथ आती है।

आप देख पाते हैं कि आप किन मुखौटों के पीछे जिए और किन हिस्सों को कभी सांस लेने ही नहीं दी।

लेकिन जो खालीपन आप महसूस करते हैं वो शून्यता नहीं है।

वो जगह है।

जहाँ पहली बार असली आप को जगह मिलती है।


कुछ सोचने या करने के लिए

जब सब कुछ नया, अजीब, या असहज लगे

तो खुद से एक सवाल पूछिए:


“क्या ये वाकई गलत है या बस नया है?”

क्योंकि healing अक्सर खोने जैसा महसूस होती है।

लेकिन आप जो खो रहे हैं वो आपका असली अस्तित्व नहीं है।

वो तो सिर्फ वो मुखौटा है जिसे आपने अपने आप को बचाने के लिए पहन लिया था।

आप पुराने “खुद” को शांति से विदा करें

पर उसकी अनुपस्थिति को अपने खो जाने की निशानी मत समझिए।


अंतिम एक पंक्ति


आप खुद को नहीं खो रहे आप पहली बार उस 'खुद' से मिल रहे हैं जो हमेशा अंदर था, लेकिन दबा हुआ।